HINDI GRAMMAR: Mehangai Ki Maar Hindi Essay// Hindi Grammar // Nibandh

Saturday, November 03, 2018

Mehangai Ki Maar Hindi Essay// Hindi Grammar // Nibandh

Mehangai Ki Maar Hindi Essay

महँगाई की मार

आज दैनिक आवश्‍यकताओं की चीजों में लगभग 80 से 160 गुणा वृद्धि हो चुकी है। इस लगातार बढ़ती हुई महँगाई ने तो आम से लेकर खास की कमर ही तोड़ कर रख दी है। महँगाई का लगातार बढ़ता हुआ यह चक्र न जाने कहां और कब जाकर थमेगा । आज के समय में आटे और दाल की कीमतें आसमान छू रही हैं। आज उनकी कीमते 40-50 रुपये तक हो गई है। जो सब्‍जियों और फलों  के दाम आज आसमान को छू रहे हैं। ऐसे में आज गरीब आदमी खाए क्‍या। इस बढ़ती हुई महँगाई का सबसे बड़ा कारण मांग का अधिक होना और वस्‍तु का उत्‍पादन कम मात्रा में होना है। अनियंत्रित जनसंख्‍या और भ्रष्‍टाचार, कालाबाजारी, चुनाव और सरकारी मशीनरी के बढ़ते फिजूली खर्चे, दंगे-फसाद और युद्ध आदि स्‍थितियां
भी महँगाई को बढ़ाती है। महँगाई सबसे ज्‍यादा गरीब और मध्‍यम वर्ग के लोगों को ही अपना शिकार बनाती है। उन्‍हें अपना पेट काटकर अपने बच्‍चों का पेट भरना पड़ता है। उन्‍हें गंदगी और झुग्‍गी वस्‍तियों में रहना पड़ता है। जिससे वे अनेक बिमारियों के शिकार हो जाते हैं। और ईलाज महंगा होने के कारण भी परेशानियों का सामना करते हैं। इस महँगाई के दुष्‍चक्र से बाहर आने के लिए हमें पहले अपनी बढ़ती हुई जनसंख्‍या को रोकना होगा और उपयोग की वस्‍तुओं का उत्‍पादन बढ़ाना होगा। भ्रष्‍टाचारियों और वस्‍तुओं की कालबाजरी को रोकने के लिए कड़े कदम उठाने होंगे। सरकार को इनकी रोकथाम के लिए कानून तक बनाने पड़े तो कोई हर्ज नहीं है। हमें अपनी इच्‍छाओं और अपने स्‍वार्थ को परे रखकर अपने समाज और देश के प्रत्‍येक नागरिक के हितों के बारे में सोचना होगा और अपने समाज को इस महँगाई के दानव से मुक्‍ति दिलानी होगी।


No comments:

Post a Comment

Popular Posts