संधि (CONJUNCTION) Sandhi Vichande |
संधि (CONJUNCTION) क्या है इसे हिंदी व्याकरण क्या स्थान मिला है?
संधि (CONJUNCTION)
दो या दो से अधिक शब्दों के परस्पर मिलने से बनती है। इसका महत्व हिंदी में
इसलिए और भी बढता है क्योंकि अक्सर संधि से संबंधित प्रश्न हम प्रतियोगी
परीक्षाओं में देखते हैं। हिंदी भाषा में संधि एक प्रकार का अर्थ-विकार है जो वर्णों
के मेल से उत्पन्न होता है। संधि की आवश्यकता इसलिए हुई क्योंकि जब हम दो शब्दों
का उच्चारण एक साथ करते हैं तो उच्चारण की सुविधा के लिए हम उन दोनों शब्दों को
अलग-अलग उच्चारित न करके उन्हें एक साथ जोड़कर पढ़ते हैं और इस प्रकार एक नये
शब्द का उदय होता है। इस नये शब्द के उदभव में हम पहले शब्द का अंतिम और दूसरे
शब्द का प्रारंभिक शब्द का
मेल करते हैं इसे ही हम संधि कहते हैं। संस्कृत भाषा में परस्पर संयुक्त शब्द लिखे जाते हैं और हिंदी में भी संस्कृत भाषा के अनेक शब्द तत्सम शब्दों के रूप में मौजूद हैं इसलिए संस्कृत भाषा के संधि नियमों को हिंदी भाषा में ज्यों का त्यों अपना लिया गया है। संधि से हमें इन तत्सम शब्दों को जानने में सहायता मिलती है। परंतु हिंदी भाषा में कुछ शब्द विदेशी भाषाओं से भी लिये गए हैं इसलिए उन विदेशी शब्दों पर संधि के नियम लागू नहीं होते ।
मेल करते हैं इसे ही हम संधि कहते हैं। संस्कृत भाषा में परस्पर संयुक्त शब्द लिखे जाते हैं और हिंदी में भी संस्कृत भाषा के अनेक शब्द तत्सम शब्दों के रूप में मौजूद हैं इसलिए संस्कृत भाषा के संधि नियमों को हिंदी भाषा में ज्यों का त्यों अपना लिया गया है। संधि से हमें इन तत्सम शब्दों को जानने में सहायता मिलती है। परंतु हिंदी भाषा में कुछ शब्द विदेशी भाषाओं से भी लिये गए हैं इसलिए उन विदेशी शब्दों पर संधि के नियम लागू नहीं होते ।
अर्थ एवं परिभाषा :-
संधि का शाब्दिक अर्थ है- संयोग या मेल । हिंदी भाषा में दो या दो से अधिक शब्दों के मेल से जो शब्द उत्पन्न होता है उसे संधि कहा जाता है। जैसे :- पुस्तक + आलय = पुस्तकालय ( अ + आ = आ )
संधि विच्छेद :-
जिस संधि शब्द को उसकी पूर्व अवस्था में लाना ही संधि विच्छेद कहलाता है जैसे :- धर्मात्मा = धर्म + आत्मा ( आ = अ + आ )। संधि के भेद :- संधि के तीन भेद हैं। 1. स्वर संधि 2. व्यंजन संधि 3. विसर्ग संधि । स्वर संधि :- जैसाकि नाम से स्पष्ट है कि दो स्वरों के मेल से जो संधि होती है स्वर संधि कहलाती है। जैसे :- शिव + आलय = शिवालय ( अ + आ = आ ) ।
स्वर संधि के पांच उपभेद हैं
1. दीर्ध संधि 2. यण संधि 3. गुण संधि 4. वृद्धि संधि 5. अयादि संधि ।
1. दीर्ध संधि :-
जब पहले और दूसरे पद में दीर्ध स्वर ( अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ ) हों तो दोनों को संयुक्त करके बड़ा अर्थात दीर्ध स्वर ( आ, ई, ऊ, ऋ ) बन जाते हैं तो दीर्ध संधि कहते हैं। दीर्ध संधि के कुछ उदहारण हम नीचे दें रहे हैं।1. अ + अ = आ
शिव + अयन = शिवायननयन + अभिराम = नयाभिराम
राम + अवतार = रामावतार
राम + आयन = रामायान
वेद + अंत = वेतांत
उत्तम + अंग = उत्तमांग
शब्द + अर्थ = शब्दार्थ
स्वर्ण + अवसर = स्वर्णावसर
सत्य + अर्थी = सत्यार्थी
धन + अर्थी = धनार्थी
अस्त + अचल = अस्ताचल
पुस्तक + अर्थी = पुस्तकार्थी
परम + अर्थ = परमार्थ
गीत + अंजलि = गीतांजलि
परम + अणु = परमाणु
भाव + अर्थ = भावार्थ
स्व + अर्थ = स्वार्थ
पर + आधीन = पराधीन
वीर + अंंगना = वीरांगना
2. अ + अा = आ
दिव्य + आत्मा = दिव्यात्मा
देव + आलय = देवालय
राम + आधार = रामाधार
हिम + आलय = हिमालय
परम + आत्मा = परमात्मा
सत्य + आनंद = सत्यान्नद
सत्य + आग्रह = सत्याग्रह
भय + आकुल = भयाकुल
परम + आवश्यक = परमावश्यक
गर्भ + आधान = गर्भाधान
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