HINDI GRAMMAR: अलंकार // ALANKAR // FIGURES OF SPEECH // HINDI ALANKAR

Tuesday, February 13, 2018

अलंकार // ALANKAR // FIGURES OF SPEECH // HINDI ALANKAR

अलंकार //  ALANKAR // FIGURES OF SPEECH // HINDI ALANKAR

आईये आज हम पढ़ते हैं अलंकार । अलंकार अर्थात् आभूषण या गहना ।
अलंकार //  ALANKAR // FIGURES OF SPEECH // HINDIGRAMMAR
अलंकार //  ALANKAR // FIGURES OF SPEECH

अलंकार की परिभाषा एवं अर्थ :-

जिस प्रकार एक मनुष्‍य अपने शरीर को सजाने के लिये गहनों और आभूषणों का प्रयोग करता है, उसी प्रकार काव्‍य की शोभा को बढाने के लिये हम अलंकारों का प्रयोग करते हैं। अलंकार काव्‍य को शब्‍दगत और अर्थगत चमत्‍कार के माध्‍यम से एक आकर्षक रूप प्रदान करता है। अलंकार काव्‍य को विभूषित करने तथा उसे प्रभावशाली बनाकर अभिव्‍यक्‍त करने का एक साधन है। जैसे :-
पल-पल बहता जाऊ भवसागर मझधार,
गुरू बिन कौन लखावै पार

अलंकार का महत्‍व :-


  1. काव्‍य की सुंदरता को बढ़ाने के लिए ।
  2. कविता को अधिक प्रभावशाली और प्रभावपूर्ण बनाने के लिए ।
  3. भावों को अधिक गहराई से काव्‍य में निरूपित करने के लिए।

अलंकारों के भेद :-

शब्‍दालंकार:-

जैसे नाम से पता चलता है जहां केवल शब्‍दों के द्वारा काव्‍य में चमत्‍कार उत्‍पन्‍न किया जाता है या जहां पर विशिष्‍ट शब्‍दों के माध्‍यम से काव्‍य में सौंदर्य उत्‍पन्‍न करने वाले शब्‍दों को शब्‍दालंकार कहा जाता है।  

  1. अनुप्रास अलंकार
  2. यमक अलंकार
  3. श्‍लेष अलंकार

1. अनुप्रास अलंकार:-

जहां पर एक ही वर्ण की आवृति एक से अधिक बार हो वहां काव्‍य में अनुप्रास अलंकार होता है जैसे :-
भारत मां की खातिर तम नै कर दी खतम जवानी । 
याद करेगी वण ली पीढ़़ी थारी कुरबानी। 

'आ' की आवृति दो बार होने के कारण यहां अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है।
रघुपति राघव राजा राम

यहां 'र' शब्‍द की आवृति के कारण अनुप्रास अलंकार है।

यमक अलंकार :-

जहां एक ही वर्ण की आवृति एक या अधिक बार हो और प्रत्‍येक स्‍थान पर अर्थ भिन्‍न हो उसे  यमक अलंकार कहा जाता है।
 जैसे:- 
कनक-कनक ते सौ गनि, मादकता अधिकाए,
या खाए बौराए जग, वा पाए बौराए।
यहां शब्‍द 'कनक' का दो स्‍थानों पर प्रयोग किया गया है परंतु दोनों स्‍थान पर अर्थ भिन्‍न है-
 एक स्‍थान पर इसका अर्थ है धतूरा और दूसरे स्‍थान पर अर्थ है सोना । इसका अर्थ यह है कि साने में धतूरे से सौ गुणा अधिक नशा होता है। क्‍योंकि धतूरे को तो खाने से नशा होता है और सोने की प्राप्‍ति से ही नशा हो जाता है।

श्‍लेष अलंकार :- 

काव्‍य में जहां पर वर्ण का प्रयोग एक ही बार हुआ हो परंतु उसके दो या दो से अधिक अर्थ निकलते हों, वहां श्‍लेष अलंकार का प्रयोग होता है। जिसका शाब्‍दिक अर्थ है चिपकना ।
जैसे :-
रहिमन पानी रखिए, बिन पानी सब सून ।
पानी गए न उबरै, मोती-मानुष-चुन ।
यहां एक वर्ण पानी का प्रयोग हुआ है परंतु प्रत्‍येक स्‍थान पर इसका अर्थ भिन्‍न है। मोती से परिपेक्ष्‍य में चमक, मनुष्‍य के संदर्भ में इज्‍़ज़त, आटे के संदर्भ में जल ।

अर्थालंकार:-

जैसेकि नाम से ज्ञात होता है कि जहां शब्‍दों के अर्थ से काव्‍य में चमत्‍कार उत्‍पन्‍न हो उसे अर्थालंकार कहा जाता है। अर्थालंकार काव्‍य के आंतरिक सौंदर्य का कई गुणा बढ़ा देते हैं। 

अर्थालंकार के भेद :-

अर्थालंकार के अनेक भेद होते हैं जिनमें से महत्‍वपूर्ण अलंकारों के विषय में पढ़ते हैैं। 

1. उपमा  2. रूपक 3. मानवीकरण 4. उत्‍प्रेक्षा 5. अतिशयोक्‍ति 6. संदेह 7. उल्‍लेख 8. विरोधाभास आदि (अर्थालंकारों के 100 से भी अधिक भेद होते हैं )


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